ज़रूरी है क्या इतने नखरे दिखाना,
क़यामत है ज़ालिम तेरा भाव खाना!
पलों में मिटाते हो एहसास दिल के,
गज़ब है ये आदत बनाकर मिटाना.!
जताते हो शिक़वे हजारों वफ़ा में,
बहुत जानलेवा है नज़रें मिलाना..!
नहीं हम अकेले हैं बिस्मिल तुम्हारे,
ये सारा शहर है तुम्हारा दीवाना..!
फ़रेबी हैं आंखें दगेबाज़ फ़ितरत,
शिकारी को भी ये बना दें निशाना.!
ये ज़ुल्फ़ों के साये जिसे रास आये,
वो ख़ुद भूल जाएगा अपना ठिकाना!
सितमगर ये सूरत है मासूम इतनी,
वहम हो रहा जैसे रिश्ता पुराना..!
सिद्धार्थ मिश्र
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