ये आती जाती ऋतुएं ही करती हैं वसुधा का श्रृंगार, कभी पुष्प कुसुम भर देती हैं कभी लेती हैं सब पर्ण झाड़... फिर पख पखवाड़ों का सिलसिला और मौसमों का बदलना मन को भी ढाल लेते हैं अपने रंगों रूप अनुसार।।
हो चाहे दुख की आंधी या हो खुशियों की बहार हर वक़्त एक जैसा नही रहता। सृष्टि का यही नियम है परिवर्तन वक़्त और हालात के साथ और कभी कभी खुद को भी पड़ता है बदलना।
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