दुश्मनों को भी भा जाये अंदाज कुछ ऐसा है...
मीठे ज़हर सा हूँ, मेरा मिजाज कुछ ऐसा है...
मरीज खुद्दारी का हूँ, बस यही है मर्ज़ मेरा...
चारागर परेशाँ हैं, मेरा इलाज कुछ ऐसा है...
कितना भी सच बोलूँ, ये मानेंगे सच थोड़े...
तेरे शहर को मुझसे ऐतराज़ कुछ ऐसा है..
ये कुछ ऐब भी हैं तो हैं ज़माने से जुदा मुझमें...
तभी मशहूर हूँ, बदनामी का ताज़ कुछ ऐसा है..
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