है ग़नीमत के मन्ज़िलों के कितने करीब हैं, और फिर भी नहीं हासिल, बड़े बदनसीब हैं.. उम्र गुज़री सफ़र में, फिर भी न कहीं पहुँचे, ये रास्ते मोहब्ब्त के कितने अजीब हैं....
तेरे रुख़सार पर मरती हैं मौसमों की मस्तियाँ, हम पर तो गुलिस्तां एक कली भी नहीं मरती, थम-थम के गिराती है बिजलियाँ भी रोशनी हुजूर पर, हम बदनसीब पर खुदा की नज़रे करम भी नहीं होती,,,,‼️