मैंने जिन्दगी का तमाशा, करीब से देखा है
जिस शख्स से मुहब्बत की, खूबसूरत था
उसे होते हुए अजीब सा देखा है
जो उजला दिन सा था, उसे बीतती तारीख सा देखा है
जो मंजिलें आसमां छू रहा था, उसे गिरते जमीन पे देखा है
जो मखमल पे टहलता था, उसे मेहनती लाचार गरीब सा देखा है
जो तकदीर था सबकी, उसी का खोटा नसीब सा देखा है
जो कांच सा अनमोल, मैंने उसे टूटते बड़े करीब से देखा है
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