मर जाऊं
कशमकश, है जिधर जाऊं मायूसी की गर्द है मुझ पर
बेज़ार है, सभी किधर जाऊं छू ले ज़रा, मैं निखर जाऊं
तेरे इशारे पर, भी मुस्तैद हूँ सितम और बाकी तो नही
सुन ले मुझे, मैं संवर जाऊं है बला कोई, मैं गुज़र जाऊं
मुम्किन नही, राज़ी हो सभी हसरतें मेरी सब खाक हुई
कैसे टुकड़ो में बिखर जाऊं तेरी हो आरज़ू, ठहर जाऊं
रिश्तों का कीचड़ है, पसरा ज़िंदगी फुर्सत भी दे, 'राज',
बन कर कमल, उभर जाऊं वक़्त मिले, कभी मर जाऊं
Dr. Rajnish kumar
(Raj4ever)
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