तेरी चाहत का दिया फिर जल उठा तुझसे मिलन को फिर दिल तरप उठा फिर आ गए उसी मोड़ पे जीन राहो में तुझे खो बैठा चढ़ गई प्यास फिर नैनो में महफ़िल ए मोहब्बत फिर सजा बैठा इवादत ए मुकदर को चल फिर परखे फिजा ए मोहब्बत में फिर अपना नाम होगा खो जाए फिर कही गुमनामी के साए में हमारी मोहब्बत से गुलजार ये कायनात होगा।
किसे पुकारते हो ज़ोर - ज़ोर से, ऐ हवाओं के आका बताओं हर ओर से। तुम्हारी बैचेनी क्यों इतनी बैचेन हैं, किसके दीदार को तरसे तुम्हारे नैन हैं... (अनुशीर्षक में पढ़ें)