वो बादल गरजना... ये पानी छलकना... आतिशबाज़ी सा... यूँ बिज़ली चमकना। मेरे किस काम की... जो तुम साथ नहीं हो। वो इंद्रधनुष के रंग... वो रिमझिम जलतरंग। मेरे किस काम की... जो तुम साथ नहीं हो। मैं ही किस काम की.... जो तुम पास नहीं हो।।
बन के फिज़ा का पत्ता तूँ उड़ चल हवाओं में, क्यूँ बंध के यूँ पड़ा हैं इस पेड़ों की दयारो में, बुलाता हैं पगला पवन तुमको अपनी बाहों में, आ फ़ना कर खुद को उसकी प्यारी पनाहों में ..