उलझनें हैं घेरे हुए मन भी बहोत उदास है, होठ हैं खामोश लेकिन कह रही हैं जिंदगी........।।
उम्र के साथ ही मुसिबतें भी बढ़ रही, दो किनारों की तरह बस बह रही है जिंदगी.........।।
खड़ी की हमने कई इमारतें और बढ़ गई वो गुमान मे, बन के खंडहर इक पुराना अब ढह रही है जिंदगी.......।।
बचपन का टूटा हुआ खिलौना आज फिर रूला रहा, याद आया फिर से वो जब टूट रही है जिंदगी........।।
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