रोज-रोज की आवाजाही अब बेमानी सी लगती है। सब कुछ करके भी लगता है कि कहीं कोई कमी सी है।सपनों का कहना ही क्या हमें सजाने का अधिकार नहीं, दो परिवारों के बीच में झूले फिर भी हमारा कोई परिवार नहीं।
सबका सपना पूरा करे ये जिम्मेदारी हमारी हैं। सब कुछ करके भी जाने क्यों कहीं कोई कमी सी है।
सबकी बातों को ध्यान से सुनो यही सिखाया जाता है, सब कुछ करके कुछ न बोलो यही पढ़ाया जाता है।
महिला के अधिकारों का कितना महान महिमामंडन हैं, कितने मिले अधिकार उसे हर एक का हुआ यहां खड़न है। आखिर सबको एक बात क्यों नहीं समझ में आती है,
सबके है जज़्बात यहां तो वो भी तो जज्बाती हैं। वो भी तो इंसान हैं,जीना उसका भी अधिकार हो,
उसे भी मिले समानता,जरा इस पर भी विचार हो। जिस दिन समाज में सारे घिनौने काम रूक जाऐंगे,
उसी दिन पता चलेगा सबको कि महिला कितनी सम्मानितहै।
एक गुजारिश #मोदी जी,कभी हमारी भी सुनावाई हो, मिले अगर मौका उनको तो इस मुद्दे पर भी विचार हो।
©अनीता विष्ट
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