मैंने बारिश में भीगना चाहा चौक में जंगल उग आया बारिश में क्या था ये जानना कौतूहल था तो एहसास में भीग कर ही प्रेम कर लिया मैंने .. .. मुझे चाँद छूना था रात की सीढ़ी चढ़ सफ़र पे निकली हाथ कुछ तारे लगे धरती पर पहुँचते ही वो जुगनू हो गए प्रेम कल्पना है कोरी .. .. प्रेम का हक़ीक़त से कोई वास्ता ही नहीं।
तू मुझमें है ऐसा जैसे, हवा का बादलों के संग, रजनी का भोर से मिलन, रूठों में अपनों सा मन, नदी का लहरों से संगम, सावन में हरियाली का रंग, जीवन का मृत्यु से बंधन, ऐसे ही कुछ मुझमें है तू...