मेरी प्रीत पिया तुम क्या जानो, जग को बिसराई बैठी हूँ, तन चंचल मन व्याकुल है हर पल अकुलाई बैठी हूँ, --- मन दर्पण तन सोने सा हृदय पुंज अति शोभित है, पुष्प प्रेम के राह में तेरी मैं बिखराई बैठी हूँ, --- चित्त में तेरी अनुपम छवि मृदु स्वर की तनिक आतुरता, अलंकृत श्रृंगार से युक्त मन को भरमाई बैठी हूँ, --- प्रेमदीप की शिखा सरीखी आंच में तपकर सोने सी चंद्रकिरण की शीतलता युक्त मैं सकुचाई बैठी हूँ.... ---
जो प्रीत के नाम पे, बांधे मन को, वो प्रीत,प्रीत ना होय। आतम को आतम से बांधे, कोई ना कभी जो विवशता साधे, ऐसी प्रीत की बारिश हो, जो मुक्त करे तन को मन को, जैसी प्रीत की लगन लगे, वो प्रीत करे ना कोय। जो प्रीत के नाम पे, बांधे तुझ को, वो प्रीत, प्रीत ना होय।।