हमारी प्रवृति-प्रकृति-पसन्द-व्यवहार-चरित्र
और व्यक्तित्व के सब आयाम,
प्रेरित हमारे विचारों से..
विचार उपज हमारी मानसिकता की
और मानसिकता उपार्जित अनुभवों से,
अनुभव है वक़्त के कुछ खट्टे कुछ मीठे
और कभी कभी एकदम कड़वे उपहार..!!
तजुर्बे तो चले जाते है..
मगर छोड़ जाते है अपनी विरासत
जो झलकती है हमारे व्यवहार में,
बदल-नोच जाती है हमारे आत्म को..
एक विश्वास का तजुर्बा सब पर विश्वास करा देता है
एक धोखे से उठ जाता विश्वास कायनात से,
व्यवहार और प्रवृति की जड़ है तज़ुर्बे..!!
परिणामतः बदलते रहते है हम
हमारी भौतिक व मानसिक आवश्यकताएँ..
और हमारा व्यवहार..
क्योंकि बदलते रहते है तजुर्बे..
क्यों न बदले तजुर्बे भला?
गतिशील है समग्र जंगम
और अनस्थिर है स्थावर अपने गुण-धर्म में..!!
परिवर्तनशील सकल सृष्टि,
न अपितु प्रकृति
बल्कि अनन्त अज्ञात ब्रह्मांड भी..
कुछ नही शाश्वत यहाँ यहां तक कि सूर्य भी..
समाना अंततः उसे भी काले राक्षसी रन्ध्र में ही,
चलते रहिये..रुकना अभिशाप..और एक पाप..!!
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