# प्रतिशोध #
क्यूँ जलते हो प्रतिशोध की अग्नि में
जी- भर भीग लो,प्यार की बारिश में
जलकर तो हमेशा,राख ही हुई हासिल
प्रेम, नाकाबिल को, बना देता काबिल
एक जीवन भी कम है,प्यार के लिए
आहुति क्यों देनी, नफ़रत के लिए
छोड़ प्रतिशोध की क्रोधाग्नि को
गले लगा,प्रेम की अमर बेल- को
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