QUOTES ON #प्रतिशोध

#प्रतिशोध quotes

Trending | Latest
21 FEB 2019 AT 8:49

आज फिर हवा का रुख बदलते देखा
आँखो में नया प्रतिशोध पलते देखा,

दबी देखी निशानियाँ हमने अपनों की
बहते आँसुओं से चिंगारी निकलते देखा,

दिल और आग हो गया जब हमने
धुंए में शहर-ओ-शहर मिलते देखा,

कसूर कोई नहीं था मासूमों का लेकिन
बलि आतंकवाद की उनको चढ़ते देखा,

आज फिर उस राख से धुआँ उठता है
खुशियां थी जहां चिताएं भी जलते देखा,

कर लेते हैं लोग मौत पर भी राजनीति
यहां बाद तबाही के हाथ मलते देखा,

वो ज़हर बो रहे हैं और ज़हर ही काटेंगे
देखा जब भी उनको ईमान बदलते देखा !

-


25 NOV 2022 AT 22:54

" द्रौपदी चीर-हरण "
--------------------
( कृप्या रचना अनुशीर्षक में पढ़ें ! )

-


29 MAR 2020 AT 12:13

हुआ न था कभी बोध ऐसा
प्रकृति लेगी प्रतिशोध ऐसा
प्रलयंकारी होती है प्रकृति, पर
देखा न था कभी क्रोध ऐसा

-


15 MAY 2021 AT 10:04

ख़ुशियों ने जब भी मेरी अँगड़ाई ली,
ग़मों ने आकर फिर मुझे आगोश में ले लिया।।

हर रोज सुनकर झूठे वादों को तेरे,
अल्फाज़ों ने मुझे खामोश में ले लिया।।

दूरी बनाकर रखती हूँ यादों से भी तेरी,
बेवफ़ाई ने तेरी मुझे प्रतिशोध में ले लिया।।

-


21 OCT 2020 AT 18:47

दुनियाँ भर के,
गुनाहों का.......
मुझसे ही प्रतिशोध लोगे क्या!

चलो हमें ये भी मंजूर है,
बस इतना बता दो.......
उसके बाद तो तुम मेरे होंगे क्या!

-


10 APR 2020 AT 15:23


# प्रतिशोध #

क्यूँ जलते हो प्रतिशोध की अग्नि में
जी- भर भीग लो,प्यार की बारिश में

जलकर तो हमेशा,राख ही हुई हासिल
प्रेम, नाकाबिल को, बना देता काबिल

एक जीवन भी कम है,प्यार के लिए
आहुति क्यों देनी, नफ़रत के लिए

छोड़ प्रतिशोध की क्रोधाग्नि को
गले लगा,प्रेम की अमर बेल- को

-



जो अग्नि चिता में और दिल में जली
एक मासूम की ख़्वाहिशें सब राख कर गई
आँखों से आँसु भी छलके हैं लेकिन
प्रतिशोध की ज्वाला नस-नस में भर गई

-


19 SEP 2019 AT 9:34

प्यार में धोखा खा के जो बदले की भावना दिल में आती है।
बो प्यार में मिलने वाले जूनून से कहीं ज्यादा होता है।।

-


18 JUN 2020 AT 21:38

# 19-06-2020 # काव्य कुसुम # प्रतिशोध #
$ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $
अपने आपको इंसाफ़ की तराजू पर तौल कर देखिए,

कटु वचन सुन कर भी मुस्करा कर बोल कर देखिए,

प्रतिशोध की भावना को त्याग कर कड़वाहट शमन करें -

अपने नजरिए को बदल कर ज्ञान-चक्षु खोल कर देखिए।

-


23 APR 2017 AT 10:08

कुम्हार की माटी
आटे की लोई सी
जाने क्यों है
आज माँ खोई सी
घसीटती कभी
खुद को अनंत
गहरी खाई में
कभी खींचती खुद को
गहरी किसी खाई से
खींचकर भीतर से
फिर जाने कैसे
क्षीण मुस्कान ले आती
चुपचाप काम में
जुट जाती
बहरुपिया लगती मुझे
जाने क्षण में कैसे
धरती रूप नया
कटाक्ष क्रिया पर
प्रतिक्रिया नहीं देती
जाने क्यों प्रतिशोध
भी नहीं लेती
अत्यधिक हो जाता
जब भीतर कुछ
खुरदरे हाथों से
अपने आप को भींच लेती

-