दिल्ली सुलग रहीं
डर हैं दहसत है,नफरत दिलों में जग रही
चीख है पुकार है, सड़कों पे हाहाकार है
राते कितनी गुजर गई, दिल्ली सुलग रही
मौन है दूर है समस्या भरपूर है ,नेता सो
रहे, क्या हुआ जो दिल्ली सुलग रही
सब्र हैं इंतजार है समस्या का समाधान है
पर सब ज़िद की सुली चड़ रही
होना जाए राख का ढेर, दिल्ल सुलग रही
अंधे है बहरे है सब सत्ता के लालच में घिरे है
आम इंसान कष्ट झेल रही, दिल्ली सुलग रही
जगमगाती शाम थी,खुशियों की सौगात थी
आज शाम रो रही दिल्ली सुलग रही
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