QUOTES ON #पॉलिटिक्स

#पॉलिटिक्स quotes

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7 NOV 2020 AT 21:14

वो कहते है उन्हें कहने दो..
तुम्हारा काम हैं सहना,
मुंह मत लगो बड़े है वो..
गलत बोलें तो उफ्फ मत करना..!

क्या हुआ अगर वो सियासतदान है,
देश है कल फिर सम्भल जाएगा ना..
तुम, क्यों उन्हें बुरा भला कहते हो ,
इतने दिन से सह रहे थे ना..!
चलो,अब आगे भी सहते रहो..

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22 JUL 2017 AT 12:54

सियासत के गलियारों में चल के देखते है
कारवां संग इनके ज़रा टहल के देखते है.

बंद दरवाजे के पीछे शख्सियत इनकी
क्या है चलो ज़रा संभल के देखते है.

जन सेवक है जो, कर सेवा अमीर हो गए
गरीब हम शान इनके महल के देखते है.

दिन के उजाले में देखा है बहुत अक्स इनके
कुछ एक पल को अंधेरों में चल के देखते है.

जीते रहे हर पल रहमो करम वादों पे इनके
अब खुद के रहमो करम पे पल के देखते है.

क्यों डरे और क्यों सहे गलत हो रहे फैसले
अब अपनी मर्जी नियम पे चल के देखते है.

बहुत फेंका है पत्थर बहुत देखा है हमने तो
आ अब मैदानों में हम भी निकल के देखते है.

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2 MAY 2021 AT 19:28

हम।बचाते रह गए दीमक से अपना घर
मग़र....
कुर्सियों के चंद कीड़े
मुल्क सारा खा गए....✍️

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5 NOV 2021 AT 18:33

व्यंग्य रचना

शीर्षक: सियासत की चक्की

पूरी कविता कैप्शन में पढ़े।

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2 SEP 2019 AT 7:56

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9 FEB 2021 AT 23:11

अजनबी बड़ी तबीयत से
दर्दे हाल सुन रहे हैं।
जो पलटकर देखे ना थे कभी
वो रुक कर दुआ सलाम कर रहे हैं।

क्यों भई? कहीं कोई
फिर से चुनाव कर रहे हैं।
मतलब नए खंजरों से ताजे
पुराने कुछ घाव कर रहे हैं।

अपनी कालिख दुजों पर लगा
सभी खुद को माफ कर रहे हैं।
अपनी शकल पर धब्बों को देख
हर तरफ आईने को साफ कर रहे हैं।

एक राजा बड़ा गुणी होता था
ये बातें केवल किस्सों में हैं।
सर्प - बिच्छू की जीत हार में
विष सारा अपने हिस्सों में हैं।

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31 JAN 2021 AT 0:14

जो गरीब किसानो के ना हो सके।
वो अपने बाप के क्या होंगे।

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29 OCT 2021 AT 8:39

आजकल "यूपी" याद आने लगा है,
लगता है, चुनाव पास ही खड़ा है।

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4 MAY 2020 AT 19:59

पाबन्दियां तो उन्हें "इबादत" पर लगानी थी, वरना

"शराबखानों" में तो भीड़ आज भी उतनी ही है......

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26 FEB 2020 AT 22:23

दिल्ली सुलग रहीं

डर हैं दहसत है,नफरत दिलों में जग रही
चीख है पुकार है, सड़कों पे हाहाकार है
राते कितनी गुजर गई, दिल्ली सुलग रही
मौन है दूर है समस्या भरपूर है ,नेता सो
रहे, क्या हुआ जो दिल्ली सुलग रही
सब्र हैं इंतजार है समस्या का समाधान है
पर सब ज़िद की सुली चड़ रही
होना जाए राख का ढेर, दिल्ल सुलग रही
अंधे है बहरे है सब सत्ता के लालच में घिरे है
आम इंसान कष्ट झेल रही, दिल्ली सुलग रही
जगमगाती शाम थी,खुशियों की सौगात थी
आज शाम रो रही दिल्ली सुलग रही

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