मेरा लिखा गया वो पन्ना लोगो में काफी मशहूर हुआ जिसे मेरे अज़ीज ने कभी पढा ही नहीं । कोरा कागज़ भी कह दूँ उसे तो कम ही होगा मशहूरियत तो मिली पर वो पैगाम उसे कभी मिला ही नहीं।
पैगाम भेजा था खुदा को कि, घर भेजना जल्दी उन्हें, याद आ रही है, हमें उनकी और उन्हें हमारी। मगर खुदा भी, बड़ा जा़लिम निकला, भेजा तो है घर जल्दी तुम्हें, मगर कफ़न में लिपटे है, शव तुम्हारे।।
अगर ना रहु पास तुम्हारे तो अपनी परछाई में तुम मुझे ढूँढ लेना,रखकर अपना हाथ ह्रदय पर अपनी धड़कनों में मुझे महसूस कर लेना। चाहो मेरा दीदार तो ख़ुद को आईने में देख लेना। मिल जाए कोई तुम्हें मेरी जान-पहचान का, तो उसे एक बात कह देना, ‘याद हु मैं तुम्हें आज भी’ उसके ज़रिए मेरे लिए ये पैग़ाम भेज देना।
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