दूर गए प्रेम की खोज में अक्सर......
ढूंढ ही लेती हूँ स्मृति का कोई कोमल सा तना
स्मृतियों के तनो, शाखाओं पर प्यार के फ़ूलों में
ढूंढ ही लेती हूँ ,तेरे प्यार की कस्तूरी महक
ब्रह्माण्ड की हथेली से बड़ा वेदना का पर्वत
ढूंढ ही लेती हूँ ,अमावस में उम्मीद की किरण
बढ़ती दूरी से उपजती पीड़ा के बादलों से
ढूंढ ही लेती हूँ ,तेरे मधुमय प्रेम की कुछ बूंदे
विस्तृत ब्रह्मांड भरा हुआ है तम से तो क्या
ढूंढ ही लेती हूँ ,कमरे में दोनो का आसमान
अज्ञात अनजान लोक में अब तेरा ठौर ठिकाना
ढूंढ ही लेती हूँ ,दिल की गलियों में तेरा ठिकाना
मुकद्दर के खजाने में सिर्फ मजबूरियों के सिक्के
ढूँढ ही लेती हूँ, इन सिक्कों में तेरे प्यार की खनक
लापता है तेरे कदमों के निशाँ ज़मी की मिट्टी से अब
ढूंढ ही लेती हूँ, सेहरा की रेत पर तेरे कदमों के निशाँ
है लापता ,उलझी सी हुई राहें तुझ तक पहुँचने की
ढूंढ ही लेती हूँ, तुझ तक की राह, तेरे एहसास-ए-चाहत के सहारे
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