QUOTES ON #पीड़ा

#पीड़ा quotes

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26 DEC 2020 AT 0:29

पुन: कहती हूं..

किसी शब्द में नहीं
वह सामर्थ्य
जो उम्मीदों की
टूटन से
उपजी पीड़ा को
बयां कर सके!

और, ना ही
धरती की
किसी नदी में
वह मिठास...
जो समुद्र का खारापन
तनिक कम कर सके!

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17 MAY 2020 AT 17:59

भटक रहा है वो रोटी की चाह में
नहीं जानता वो जाये किस राह में
नहीं थकेगा वो हजारों घावों से
क्योंकि रोटी का दर्द बड़ा है उसकी आहों से।।

चली गयी नौकरी तो सहमा है वो
भूख की आड़ में भ्रमित है वो
क्या कसूर उसका उसने किस्मत ऐसी पायी
इस कदर मजदूरी मजबूरी बनकर आयी!!

होकर रोज़ तैयार, अरमानों को संजोता है
घर चलानें को वो दर-दर भटकता है
नहीं थकेगा वो हजारों घावों से
क्योंकि रोटी का दर्द बड़ा है उसकी आहों से।।

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प्रेम 🖤
👇
पीड़ा ही प्रेम
का एक मात्र
आनंद मार्ग है।

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23 NOV 2020 AT 10:37

वह सभी आकांक्षाएं
जो कभी उग आईं थीं
अनायास ही मन-आंगन में
किसी विशेष को केंद्र में लिए

वह सभी प्रयास
जो कभी किये गये थे
किसी एक बहुत विशेष
व्यक्ति को रिझाने के लिए

वह समस्त प्रार्थनाएं!!
जो कभी स्वीकार ही
नहीं की गई थी,
आपके इष्टदेव के द्वारा

और भी ऐसे तमाम दृश्य
आंखों में तैरने-बुझने लगते हैं
और प्रेमी ..... ?
केवल, चुपचाप देखते हैं
जब प्रेम लेता है
अंतिम विदा!!

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कसक बढ़ती जा रही है , इश्क रगों में दौड़ रहा है !
मेरा मुझसे कुछ छूट रहा है, दर्द दिल में हो रहा है !!

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कि अट्टहास करता मुख–मंडल,
ढांप फिरत बावरी नयन जल।
...
अंतस बिकल, ढांके देह उत्साही,
पीड़ या प्रेम एक तल ही उगाही।
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बीता सब रीते, निश्दिन बिसरावे,
सुनि, मोह तज पाषाण हुई जावे।
...
जाकी कृपा जिसे जो मिल जावे,
कहहूं ‘अबोध’ तुझे कहे न आवे।
...

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5 JUN 2020 AT 17:43

टूटते उस पर्ण का दर्द दिखा सबको,
पर छूटते उस वृक्ष का वक्ष दिखा नहीं,
लिख दिया त्याग पर पत्ती के सबने,
वृक्ष की शाख पर किसी ने लिखा नहीं!

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11 JAN 2021 AT 14:17

जिन पीड़ाओं में कोई "ध्वनि" नहीं होती,
वहीं पीड़ा सबसे "घातक" होती है..!!!

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21 JUN 2020 AT 3:05

फिर जीने मरने की बात करेंगे
मतलब जान लेकर ही मानेंगे

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1 MAY 2023 AT 22:55

दूर गए प्रेम की खोज में अक्सर......
ढूंढ ही लेती हूँ स्मृति का कोई कोमल सा तना

स्मृतियों के तनो, शाखाओं पर प्यार के फ़ूलों में
ढूंढ ही लेती हूँ ,तेरे प्यार की कस्तूरी महक

ब्रह्माण्ड की हथेली से बड़ा वेदना का पर्वत
ढूंढ ही लेती हूँ ,अमावस में उम्मीद की किरण

बढ़ती दूरी से उपजती पीड़ा के बादलों से
ढूंढ ही लेती हूँ ,तेरे मधुमय प्रेम की कुछ बूंदे

विस्तृत ब्रह्मांड भरा हुआ है तम से तो क्या
ढूंढ ही लेती हूँ ,कमरे में दोनो का आसमान

अज्ञात अनजान लोक में अब तेरा ठौर ठिकाना
ढूंढ ही लेती हूँ ,दिल की गलियों में तेरा ठिकाना

मुकद्दर के खजाने में सिर्फ मजबूरियों के सिक्के
ढूँढ ही लेती हूँ, इन सिक्कों में तेरे प्यार की खनक

लापता है तेरे कदमों के निशाँ ज़मी की मिट्टी से अब
ढूंढ ही लेती हूँ, सेहरा की रेत पर तेरे कदमों के निशाँ

है लापता ,उलझी सी हुई राहें तुझ तक पहुँचने की
ढूंढ ही लेती हूँ, तुझ तक की राह, तेरे एहसास-ए-चाहत के सहारे

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