QUOTES ON #पार्थ

#पार्थ quotes

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14 NOV 2021 AT 14:50

फूलों के जैसे महकते रहो पंछी के जैसे चहकते रहो
सूरज की भांति चमकते रहो
सुन्दर भावों से मन को भरो
ये है हमारी शुभ कामना हँसते रहो, मुस्कुराते रहो
हैप्पी बाल दिवस..♥️। -- #पार्थ😘

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9 MAR 2017 AT 5:57

हे जगन्नाथ,
थाम मेरा हाथ,
अपने रथ में
ले चल मुझे साथ।

लुभाये न मुझको अब कोई पदार्थ
मेरा तो बस अब एक ही स्वार्थ
धर्म युद्ध हो या कर्म युद्ध हो
तू बने सारथि, मैं बनूँ पार्थ ।

मैं हूँ अनाथ
बन के मेरा नाथ
अपने रथ में
ले चल मुझे साथ।

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24 APR 2018 AT 16:57

स्व का स्व से तर्पण होगा
हे! पार्थ लगता है फिर से रण होगा
फिर से कोई व्यूह होगा
लगता है फिर से कोई पार्थ, कर्ण होगा
क्षण क्षण है परिवर्तन का
परिवर्तन में ही साक्ष्य का अर्पण होगा
बजा दुदुहि की समर शेष है
वीररक्त से परिपूर्ण अब कण कण होगा
राख नही अब सिंहनाद होगा
मस्तक नही आन जीवित क्षण क्षण होगा
अस्ताचल को थाम चला दिवाकर
अब कहाँ कोई तुम सा "दिनकर" होगा

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युग निर्धारक सत्य,
कहा था कृष्ण ने,
डरो मत लड़ो पार्थ.!
वो अटल सत्य,
जिसने भारत को,
महाभारत से परिचित कराया!

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13 JAN 2017 AT 10:53

मित्र तुम कितने भले हो!
तम से भरे इस सघन वन में;
दीप के जैसे जले हो!
मित्र तुम कितने भले हो!
तुम वो नहीं जो साथ छोङो;
या मुश्किलों में मुंह को मोङो।
राह के हर मील पर तुम,
निर्देश से बनकर खङे हो।मित्र तुम कितने...
संशयों में मन घिरा जब;
तुम ही ने तो था उबारा।
पार्थ हूं जो मैं कभी,
तुम सारथि मेरे बने हो।मित्र तुम कितने...
नयन से ढलें मोती कभी तो,
हांथ सीपी हैं तुम्हारे।
हर एक क्रन्दन पर मेरे तुम
अश्रु बनकर भी झरे हो।मित्र तुम कितने....
भंवर में था मन घिरा जब;
तिनके का भी न था सहारा
डगमागाती सी नाव की तब,
पतवार तुम ही तो बने हो।मित्र तुम कितने
-सारिका सक्सेना

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6 MAR 2018 AT 15:36

बंदगी करो तो भी खुदा रुठ जाता है
आशिकी करो फिर भी सनम छूट जाता है
हम तो बस दिल को समझाते रह गए
गलतियां कोई करें हर बार यही टूट जाता है

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14 DEC 2018 AT 23:58

"तरकश में तो मेरे तीर बहुत हैं
इस पार्थ को सारथी मिल जाए"

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15 APR AT 18:38

तुम हमारी जिंदगी की आखिरी ख्वाहिश इकलौती दौलत हो सर्वप्रिय तुम रहो सबके बस यही दुआ है हमारी

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महारथी बन सारथी लड़ा गया वो युद्ध,
जीत धर्म की हो सदा दुनिया भले विरुद्ध..!

पार्थ क्लीवता से हटो मानव बनो प्रबुद्ध,
अनाचार के रक्त से होती वसुधा शुध्द..!

सज्जन का रक्षण करो दुर्जन का संहार,
धर्म युद्ध के फल सदृश यश है अपरम्पार..!

नश्वर तन है जान लो आत्म तत्व अजेय,
पाप का मर्दन तुम करो जग में इसका श्रेय..!

कर्म मनुज के हाथ है फल कर्मों का फेर,
कभी शीघ्र मिल जाएगा कभी हो थोड़ी देर..!

कृष्ण के इस उपदेश से पार्थ ने जाना धर्म,
युद्ध किया विजयी हुए समझे जब वो मर्म..!

सिद्धार्थ मिश्र

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12 APR 2017 AT 8:06

मित्रता की गर है कोई कसौटी, तो हैं वो बस कृष्ण ही,
करनी है गर मित्रता किसी से तो, करना बस कृष्ण सी।

पाँच पतियों वाली की, जब लुट रही थी लाज
तब बचाने आये थे उसे, उसके मित्र कृष्ण ही!

सुदामा सा था कोई ग़रीब ब्राह्मण नहीं
बना सके उसे रंक से नृप, उसके मित्र कृष्ण ही।

कुरुक्षेत्र के युद्ध में, मोह माया में फँसे
उस पार्थ को भी ज्ञान देने वाले, थे बस एक कृष्ण ही।

मित्र हो तो कृष्ण जैसा, उनका कोई सानी नहीं,
कृष्ण की सी मित्रता का, और कोई सानी नहीं।

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