मित्रता की गर है कोई कसौटी, तो हैं वो बस कृष्ण ही,
करनी है गर मित्रता किसी से तो, करना बस कृष्ण सी।
पाँच पतियों वाली की, जब लुट रही थी लाज
तब बचाने आये थे उसे, उसके मित्र कृष्ण ही!
सुदामा सा था कोई ग़रीब ब्राह्मण नहीं
बना सके उसे रंक से नृप, उसके मित्र कृष्ण ही।
कुरुक्षेत्र के युद्ध में, मोह माया में फँसे
उस पार्थ को भी ज्ञान देने वाले, थे बस एक कृष्ण ही।
मित्र हो तो कृष्ण जैसा, उनका कोई सानी नहीं,
कृष्ण की सी मित्रता का, और कोई सानी नहीं।
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