तेरे घर की मैं , ना लक्ष्मी बन पाई
तेरे घर की मैं , ना तुलसी बन पाई
राहों में हम मिले और वहीं पर छूट गए
आसमान के हर तारे ,जमीं पर टूट गए
ये कैसा जीवन था ? जो जिया ही नहीं
ये कैसा साथी था ? जो मिला ही नहीं
आंखों में आंसू है , और जुबां पर ताले हैं
जीवन में कांटे है , जो किस्मत ने डाले हैं
है अपनों का ये शाप , जो हम रो रहे
सौ जन्मों का है पाप , जो हम धो रहे
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