मन में मेरे मचल रहा है, वो पागल सा
दिल में भी घर कर गया है, वो पागल सा
मेरी इस मुस्कान को होंठों पर आता देख
मोम की तरह पिघल रहा है, वो पागल सा
आवाज़ देने पर भी पलटकर नहीं देखा
इस बात से कुछ जल गया है, वो पागल सा
आज सुर्ख़ रंग जो लगाया मैंने होंठों पर
ख़ुद का भी रंग बदल रहा है, वो पागल सा
लोग अब मुझे इतना तवज्जो क्यों देते हैं
इस बात से अब सहम गया है, वो पागल सा
प्यार भरा ख़त मैंने उसको लिखना चाहा था
मेरी कलम साथ लिए घूम रहा है, वो पागल सा
मुझसे बात करने की हिम्मत ही नहीं की कभी
"कोरे काग़ज़" ही सिर्फ़ भर रहा है, वो पागल सा
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