हम स्वतंत्र हैं कुर्बानी से,
वीरों के बलिदानों से..!
आज़ादी की लौ रोशन है,
कुछ पागल परवानों से..!
देश की ख़ातिर जान लुटाना,
सीखो उन अफसानों से..!
सदियों हम आज़ाद नहीं है,
पाकीज़ा एहसानों से..!
मिट कर देश की आन बचाना,
समझो इन दीवानों से..!
बेफ़िक्री अंतिम साँसों तक,
जानो तुम मस्तानों से..!
ज़िक्र उन्हीं का कायम यारों,
पूछो तुम वीरानों से..!
सिद्धार्थ मिश्र
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