QUOTES ON #पहाड़

#पहाड़ quotes

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19 OCT 2019 AT 13:53

मत गुमान और अकड़
पर्वतारोही आयेगा रौंद के चला जायेगा

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19 OCT 2019 AT 9:03

कठिन रास्ता है शेर की दहाड़ है आगे
संभल कर चल दुखों का पहाड़ है आगे

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कभी-कभी सामने पहाड़ भी
आ जाये तब भी तनिक भय
नहीं लगता.............
जितना कष्ट
एक छोटा सा तिनका
दे देता हैं.........
क्यूं......?

क्यूंकि उसका कोई
अस्तित्व नहीं होता
कोई वजूद़ नहीं होता
ना ठिकाना होता, कि
वह पहाड़ की तरह
एक जगह स्थित रह सकें

वायु के वेग में चलायमान
रहता सदैव, जब चुभ जाता हैं
फिर उथल-पुथल कर देता है
सब-कुछ और फिर .......
अनिष्ठ होना तय कर‌ देता हैं !

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2 FEB 2020 AT 8:00

वो पहाड़ रो रहा है
अपने चिथड़े देख कर
ये व्यवहार में कड़कपन
हमने दिया है तोहफे में
वो सख़्त वृहद् आसमां छू लेता जो
स्वार्थ की चोट से कराह उठा है
चट्टान से टूटा हर एक पत्थर
चीख कर कहता है कहानी
पूजे जाने वाले कभी दीपो से
हथोड़ो की मार असहनीय है
मशीनरी ज़माने में हृदयहीन है सब
झलक रहा है हर कंकड़ में
असंवेदनीय पीडा का दर्द

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4 MAY 2021 AT 8:20

आओ मेरा साथ दे दो इसकी तरह...
यह अटल है जिस तरह...
ना झुकता है ना थकता है ना भटकता है
ऐसा साथ निभाओ और जीवन साथी बन जाओ..

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16 MAR 2021 AT 10:10

पहाड़ों की कंदराओं में बैठकर तप कर लेना सहज है, किन्तु परिवार में रहकर धीरज बनाए रखना
सबके वश की बात नहीं है।

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4 JAN 2019 AT 15:51

मेरे संग रह सको तो मालूम हो तुम्हे
पहाड़ की पर्वत सी ही होती हैं मुश्किलें

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19 OCT 2019 AT 9:28

शांत और स्थिर रहना,
नदियों से सीखो
आगे चलते रहना,
हवाओं से सीखो
आजाद रहना,
पेड़ पौधों से सीखो
अपने मिजाज में रहना,
हाँ ऐसे ही बहुत कुछ सिखाती हैं
प्रकृति हमारी।

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13 JUN 2021 AT 12:20

'पहाड़ की छांव'
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बचपन बीता जिस पहाड़ की छांव में
उस छांव से ही मुंह मोड़ चला..
थाम ली ख्वाबों की डगर
और मुसाफ़िर बन मैं चल पड़ा,
छोड़कर उस पहाड़ की छांव को पीछे
आगे-आगे मैं चल दिया..
मगर आगे मिले जो जिम्मेदारियों के पहाड़
फ़िर उन्हीं में उलझकर मैं रह गया,
भटका बहुत राहों में
अपनों से भी दूर हुआ..
देखे कई पहाड़ जीवन में
मगर उस पहाड़ की छांव के लिए तरसता रहा,
देख जीवन की तमाम लहरें
मैं गिरा,संभला,उठा और चला..
बस इस तरह....सुकून की तलाश में मैं
सुकून को ही छोड़ चला..!

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4 JUL 2019 AT 9:36

जब सदविचार
के संस्पर्श से
ढह गयी चट्टान
मेरे प्रश्नों की, संशयों की,
दुविधा की, उलझनों की
तब बहने लगीं अविरत
सहस्रों धाराएं
जिज्ञासाओं की
मिलने समाधान से

......जैसे मिलते हैं
अविचल पहाड़ नदियों से
नदियां अपार समुद्र से
समुद्र व्यापक आकाश से
आकाश "दिव्य प्रकाश" से !!!

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