QUOTES ON #पलछिन

#पलछिन quotes

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1 AUG 2017 AT 0:42

न मैं 'मैं' रहूँगा न वो 'वो' रहेगी
अब सब कुछ बदलने वाला है

होने वाला है इज़हार-ए-इश्क़
मदमस्त सावन आने वाला है

लगेंगे और भी हसीं पलछिन
राज़-ए-इश्क़ खुलने वाला है

दो ज़िस्म-ओ-जाँ होंगे फ़ना
पैमाना जो छलकने वाला है

क़तरा-क़तरा होगा रूहानी
ख़ुदा भी ख़ुद आने वाला है

- साकेत गर्ग

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9 JUL 2018 AT 1:20

जहाँ दूसरों को उनकी वाली
उनके माँ-बाप से
'अलग' करना चाहती है
वहीं 'मेरी वाली' मुझे
मेरे माँ-पापा की सेवा
करने को 'उकसाती' है

जहाँ बाकी चाहती हैं
उन पर हो ख़र्च
और ख़र्च भी हो बे-लगाम
यहाँ मेरी वाली ख़ुद पर तो क्या
'मेरे अपने ख़र्चों' पर भी
'लगाम' लगाती है

जो कोई अपनी वाली से
कभी बात ना कर पाये
वो सारी दुनिया सिर उठाती है
यहाँ मेरी वाली मुझे 'थका पाकर'
बात करने का 'ख़ुद का मन मार'
डाँट-डपट मुझे 'सुलाती' है

करती होगी दूसरों की
वो शोना-बेबी-बाबू
उनसे वो सब प्यार-व्यार
मेरी वाली तो बस हर पलछिन
हर साँस के साथ
मेरा 'साथ' निभाती है

- साकेत गर्ग 'सागा'

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27 NOV 2019 AT 13:37

ज़िन्दगी गुजरेगी तुम बिन।
आंखें बरस जाती हैं
जब याद आते हैं वो पलछिन।

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फूल भी उसने वहाँ मेरे ही गुलिस्ता के लगाये होंगे न "ख़्वाहिश"..
और एक हम है जो पूरे बाग के होते हुए भी मुरझाए बैठे है यहाँ..

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सिमटे बैठे हैं हथेली पे वो सारे पलछिन,
तुम्हारे साथ, तुम्हारे बिन।

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24 MAR 2020 AT 12:17

आये थे अकेले, है अकेला ही जाना।
फिर क्यूं किसी से मोह लगाना।
सही गलत में है उलझी दुनिया,
पर क्या सही और क्या गलत,
है हम इंसानों का ही बनाया पैमाना।
आये थे अकेले, है अकेला ही जाना।

तलाश उस आदर्श की न होती यहां पूरी कभी।
हैं खुद ही खुद में न जाने कहां मशगूल सभी।
न छूटे कोई अपना, न टूटे कोई सपना।
चेहरे पे मुस्कान लिए, यूं हीं आगे बढ़ते जाना।
आये थे अकेले, है अकेला ही जाना।

जीवन का ये मिला जो पल है,
यूं पल पल में बनता ये कल है।
संजोकर यादें इन परिवर्त्य पलछिन की,
है सबको इस दुनिया से जाना।
आये थे अकेले, है अकेला ही जाना।।

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27 APR 2020 AT 8:14

सा लगता है तुम बिन
जब याद आते हैं गुज़रे हुए वो पलछिन।

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25 APR 2020 AT 2:18

लगता है मुझको
पर दिल को नहीं लगता
हां बहल जाता है
कहीं खो जाता है
पर भूल नहीं पाता है दिल
वो पलछिन
याद अा ही जाते हैं हर दिन
फिर यादों से भर जाता है दिल

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26 APR 2018 AT 21:30

क्यूँ गीत लिखूं

क्यूँ गीत लिखूं,
जब तेरी आँखों की मदहोशी मुझे सताती है?
क्यों बोल दूँ उन लम्हातों को,
जो मेरे दिल को सताते हैं?
तेरी आंखों की चमक मुझे अब भी याद है।
तेरे चेहरे का नूर मुझे अब भी याद है।
तेरे बालों की सुगंध भी मुझे मदहोश करती है।
है याद वो खनक,
जो तेरी हंसी में आज भी गूंजती है।
वो छन छनाहट तेरी पायल की,
जो मुझे दीवाना करती थी।
वो लाली तेरे गालों की,
जो मेरे लबों पर मुस्कुराहट ला देती थी।
तेरी हर बात जो मेरे दिल पर छपी है,
बता क्यूँ उन जज़्बातों को शब्द दूँ,
जिन्हें तूने कभी समझा ही नहीं?
क्यूँ गीत लिखूं उन लम्हातों पर,
जो तुझे अमर कर दें,
और मुझे दीवाना?

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2 JAN 2020 AT 15:52

ये फासले ही है,
कि जब वे मिलते हैं,
तो अक्सर खूबसूरत शायरी में बदल जाते हैं।

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