हम मां-बाप होकर भी बेटी के साथ अन्याय कर देते
लाड़ तो बहुत करते पर उसकी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते
मन में यह सोचते कि पढ़ेगी तो पढ़ लेगी
इसे कौन सी नौकरी करनी है
अच्छा घर-बार देखकर ब्याह देंगे
और ज़्यादातर तो पढ़ाई पूरी हुए बिना ही
अच्छा रिश्ता है सोच कर बेटी की शादी कर देते।
उसके सपनों की परवाह किए बिना
एक बंधी-बंधाई परिपाटी में उसको झोंक देते
और फिर वह बेचारी दोहरी जिम्मेदारियों में फंस कर
ना तो ठीक से पढ़ाई ही कर पाती और
ना ही घर संभाल पाती
और सारी जिंदगी असंतुष्ट ही रह जाती।
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