कई बार टूट कर बिखरी है जिंदगी
और हौसले से गूँथी गई है कई बार
कई बार पतझड़ ने छीने हैं पेड़ों से पत्ते
और हर बार ही नई कोपलें फूटी हैं।
कई बार मायाजाल ने भटकाया है मन
और बिंदु बिंदु विचार किया है कई बार
कई बार शरीर दग्ध हुआ ईर्ष्या के ज्वालामुखी से
और उसी राख मे उत्साह के रत्न मिले हैं कई बार।
अनगिनत बार परिस्थितियाँ प्रतिकूल रही हैं
पीड़ित रहा है मन, मिली हैं कितनी ही क्षणिक हार
पर हठी मन लड़ने को उद्यत हर बार,
कई बार इस उमंग ने विश्वविजय किया है
स्वयं पर विजय पायी है,कई बार कई बार कई बार।
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