जिंदगी हमसे और हम ज़िन्दगी से पराये हुए
कभी जान था तेरी महफ़िल मे ,
पर आज मेहमान हम बिन बुलाये हुए
बरसों लग गए जिस पौधे को सींच कर पेड़ बनाने में
अब टूट रहे हैं उसी के पत्ते जलाये हुए जिंदगी हमसे और हम ज़िन्दगी से पराये हुए !!
कभी मिलो फुर्सत से फसानो का दौर चले
बड़े दिन हुए किसी को हाल-ए-दिल सुनाये हुए
यक़ीनन मुझे अंधेरों ने घेरा हुआ है मगर
मैं फिर भी बैठा हूँ मन में आस का दीप जलाये हुए
जिंदगी हमसे और हम ज़िन्दगी से पराये हुए !!
मेरी कहानी तो सिमट जायेगा चंद अलफ़ाज़ भर में
फिर क्या सुनेंगे लोग दूर दूर से आये हुए
चलो ये भी खूब रहा कि तुम्हारा सहारा मिला "मुझ" को,
नहीं तो मुमकिन नहीं था जीना, अपना बोझ उठाये हुए
जिंदगी हमसे और हम ज़िन्दगी से पराये हुए"""
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