QUOTES ON #परजीवी

#परजीवी quotes

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28 JAN 2021 AT 13:55

परजीवी हो गया हूँ,
जीने लगा हूँ तुम्हारी यादों के सहारे।

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10 DEC 2021 AT 22:47

परजीवी व परपोषी लोग
हर जगह मिल जाते है
ऑफिस और दफ्तर में
हर जगह टकराते है
बहती गंगा में हाथ धोने के
सिद्धांत को अपनाते है
लज्जा को भी लाज आ जाये
ऐसी चारित्रिक गिरावट
का नमूना दिखलाते है

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22 MAR 2021 AT 5:51

यूँ कब तक परजीवियों की तरह जिये कैसे
लेकिन अपनी जड़ों को जमाये भी कैसे
ना कदमो के नीचे धरती है,
ना सर के ऊपर आसमान अपना

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14 FEB AT 12:23

ओ मेरे प्रेम...!... तुम्हें लिखते हुए
मैंने समझी हैं पंछियों की बोली,

छू पाई हूँ नदियों और झरनों के मर्म को
देखे हैं मैने सहृदय में जबरन्
रखे गए पत्थर,
प्रेम की बेहतरी के लिए...

तुम्हारे रूपों के विस्तार पर
जीवित रही... पलती रही मैं परजीवी सी,
निर्भर रही तुम पर
सदा ही, सदा से
ऐ प्रेम,तुम्हें लिखे गए मेरे सब भोजपत्र कोरे थे,
उन के अलिखित भाव तुम तक पहुंचाने के लिए
मैंने छु'आ है अनेकों बार तुम्हें...

कभी तुम्हारी देह पर, कभी हथेलियों पर,
कभी तुम्हारे माथे पर किए हैं अपने स्पर्श के
दस्तख़त!
और प्रतिउत्तर में भी पाए वही...
स्नेहिल, हस्ताक्षर तुम्हारे...

मैंने जीए हैं वो सभी रूप
जिन भी रुपों से मैने पाया तुम्हें पृथ्वी पर...
सृष्टि के खूबसूरत ...
संतुलन के लिए...!

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4 AUG 2020 AT 7:59

हां,वो बड़ा हो गया है
अपने घमण्ड़ में खडा़ हो गया है
कर रहा है पोषण जड़ से
वो धरती से अलग हो गया है

जैसे कोई अमरबेल
चूसता है रस का पेड़
फैल के चारों ओर
पत्ते-पत्ते के कोमल छोर
बढ़ गया है देखों!चारों ओर
बन के बोझ पेड़ों पर ही पडा़ है

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15 JUL 2020 AT 0:19

* परजीवी *

भीतर से तुझको नोंचता, जो चोट चोट खरोंचता...
जिह्वा पर स्वाद रक्त का, हृदय से ना कभी सोचता...

बहता लहू जो चाटता, तुझे टुकड़ा टुकड़ा बांटता...
नखशिख सना है दम्भ में, तेरा अंग अंग काटता...

ना सर्प ना वो बाघ है, अंतः तमस सी आग है...
विश्वास का कातिल अजर, सहस्त्र फन सा नाग है...

उगता फनी के फूल सा, चुभता हृदय में शूल सा...
कहीं और जन्मा है अमर, कहीं और पनपे भूल सा...

धन है नहीं न नीवी है, बिन तन का ही यह जीवी है...
अस्तित्व खुद का है नहीं, **(अ)हंकार** एक परजीवी है।।

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21 FEB 2017 AT 14:22

वो फूल तोड़कर लाता था
वो रोज उसे गुलदस्ते में सजाती थी
वो जानती थी कि...
एक दिन उसे भी किसी बगिया से
तोड़कर लाया गया था इसी तरह।
और सजा दिया गया एक सामान की तरह
और शायद जब वो मुरझा जायेगी
तो फेंक दिया जायेगा इन फूलों की तरह
चार दीवारी के किसी कोने में।
हाँ वो फूल ही तो है।
फर्क बस इतना है कि वो औरत है।
एक के लिए पराया धन दूसरे घर के लिए परजीवी है।
फिर भी वे जीव नहीं और न जीवित ही है ।
बस एक मशीन की तरह
शायद एक कृत्रिम फूल की तरह।
या कामकाजी घरेलू उपकरण की तरह।
हाँ वो औरत है।

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व्यक्ति, "परजीवी" है,
जब भी निर्णय का समय आता है, उसकी आंखें
दिल, और दिमाग, दूसरों का दृष्टिकोण देखता, समझता और महसूस करता है।
रश्मि

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8 FEB 2021 AT 21:52

संसद में आज का शब्द
आन्दोलनजीवी और
परजीवी पर हमेशा
श्रमजीवी भारी पड़ेगा।

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