लिखी तहरीर रब ने, हमें हाजिर-नाज़िर मान कर,
पर शर्त अता की, कि ढूंढना होगा एक दूसरे को!
कुछ थी कुदरत की इनायत, कुछ तिलिस्मी इशारे,
सहारे जिसके, पहचाना था एक नजर में तुमको!
जिस्म एक न हो सके, कोई गम नही रती भर भी,
रूह को पनाह मिले, जिस पे फ़ना होना हम को!
हैं दूर, बहुत दूर, भले ही मिले या ना मिले कभी,
हमसाया है एक दूसरे के, यह इल्म रहे तुमको!
कुछ है बातें अधूरी, कुछ कहना है बाकी अभी,
लिख के दूंगा सब खत में, मिले पैगाम तुमको!
मिलेंगे एक बार, चाहे आखरी हिचकी से पहले,
हो मोहब्बत मुकम्मल, तो आखरी सलाम तुमको!
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