पतझड़ भी हिस्सा है जिंदगी के मौसम का फर्क सिर्फ इतना है कुदरत में पत्ते सूखते हैं हकीकत में रिश्ते तेरी यादें जैसे मौसम-ए-पतझड़.. जब भी आती है बिखेर देती है मुझे..
वृक्ष की शाखाओं पर नव - हरित पत्तों के जन्म में प्रत्येक दिशा में हरियाली फैलती हैं मगर उम्र पूरी होने पर वृक्ष से बिछड़कर सभी पत्ते झड़ने लगते हैं तब वृक्ष से जुदा होने के गम में सभी मुरझा जाते हैं और शायद इसी मौसम को पतझड़ का नाम देते हैं ।
टूटना भी कितना खूबसूरत है.. है ना..., अब वो चाहे आसमां से बहती टिप टिप बारिश की बूँदें हों या.. पतझड़ में टहनियों से टूटते.. झड़ते पत्ते.. स्याह रात में टूटा कोई तारा हो.. या नयनों से बूँद बूँद अश्रु बहाता टूटा हुआ दिल,
प्रकृति हर शय के मिलन औऱ बिछुड़न को खूबसूरत बनाती है.. उसे जोड़-तोड़कर उसे औऱ भी अधिक निखरने का मौका देती है,
टूटना... टूट कर बिखर जाना अपने अस्तित्व को खो देना.. यूँ तो मृत्यु समान है... मगर टूटकर.. फ़िर अपने उसी स्वरूप में लौट आना बस.. इसी का नाम ज़िन्दगी है!
पतझड़ में जो फूल मुरझा जाते हैं वो बहारों के आने से खिलते नहीं कुछ लोग एक रोज़ जो बिछड़ जाते हैं वो हज़ारों के आने से मिलते नहीं उम्र भर चाहे कोई पुकारा करे उनका नाम वो फिर नहीं आते...