पतझड़ आया तुम न आए
हमनें कोरे सपन सजाए
इंतज़ार में बीत रहे हैं
मेरे सारे मौसम हाय
आंख में अब तो पड़ गयी झांयी
क्या प्रीत मेरी तुमने बिसरायी
आने को कहके गए थे तुम तो
फिर क्यों हो कराते मेरी हंसायी
कर लूंगी सोलह श्रिंगार
मानूंगी न मैं तो हार
चाहे जितनी कर लो रार
मिलन हमारा होके रहेगा
तब मुझपे तू कर देगा
अपना तन-मन प्यार निसार
-