जलता है, अग़र पडोशी का चुला, जलने दे, जलता हुआ देख, क्यूँ जलने लगे हम, खाने में नमक ज़्यादा है, या मिर्च कम, वो भला क्यूँ सोचे हम, ख़ुश्बू अच्छी है, है तो है, उसकी फ़िक्र क्यूँ करे हम, जलता है, अग़र पडोशी का चुला, तो जलने दे, उसका धुँआ क्यूँ बने हम,
इतने भी हो जब अर्जमंद, तो क्यों कमरे में सील बंद।✨ ........(१)
ज़रा रख तशरीफ़ तो जाने हम, जंजीर जुबां पर ताने हम।✨ .......(२)
कि तुम ही बस कुछ फरमाओ, हम सुनें खामोश, तुम बरसाओ।✨ .......(३)
तुम्हारे किसी उलझन में फँसे होने का शक था, पड़ोसी हैं हम तो ऐसा पूछना यह मेरा हक था।✨ .......(४)
अब जैसा भी तुम मुनासिब समझो, द्वारों को आगमन का इंतजार रहेगा।✨ .......(५.१) एक धर्म जो निभाना है समस्या हल का, तेरे मुखड़े की तबस्सुम वह इजहार करेगा।✨ .......(५.२)
उसे देखने ये मन लालायित है, न दिल में सुकून आच्छादित है।✨ ......(६) (✍️शब्दार्थ CAPTION में पढे़ं)
करुणा भाव तुम यू ना दिखाओ । मेरी चिन्ता ना करो तुम अपनी लाज बचाओ हर जगह चले आते हो ? बिन बुलाये तुम मेरी जिंदगी मे झाक , वापस चले जाते हो ! लेकर फिर खबर , इस डुबती मेरी आशियाना की लोगो मे गुनगुनाते हो और बिना वजह मुस्कुराते हो ! दो बात कह कर सहानुभूति का तुम फिर इतनी मजे उड़ाते हो ! छोड़ो तुम ! सहानुभूति अपनी तुम यू ना दिखाओ ! मेरी छोड़ो !तुम खुद की लाज बचाओ ! क्या करोगे तुम जान कर ? मेरे जिंदगी की कहानी को ! क्या तुम मेरी दर्द से मुझे मुक्ति दिलाओगे ? तुम जान कर बस खबर मेरी लोगो मे मजाक मेरी बनाओगे ! जाओ तुम क्यू आऐ हो ? अपने दरियादिली तुम मत दिखाओ मेरी छोड़ो तुम खुद की लाज बचाओ !