दूर मुसाफ़िर.. नज़र से जा रहे हैं
यह आँसु भी अपने सफ़र पे जा रहे हैं,
अभी तो जिंदा हैं यह नामुराद साँसें
फ़िर क्यूँ हम सबकी ख़ैर-ओ-ख़बर से जा रहे हैं,
शहर का शहर सारा अज़नबी सा हुआ पड़ा है
यह हम अजकल.. किस डगर से जा रहे हैं,
ख्वाइशों की टहनियाँ तो अभी सुखी नहीं थी
फ़िर ना जाने क्यूँ परिंदे शज़र से जा रहे हैं!!
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