# "नग़में दर्द के कुछ यूँ याद आयेंगे..! काश कभी हम भी मिल पायेंगे...! फ़ासला ज़रूरी है यादों के घेरे से बाहर भी आना है..! अब तो कुछ महसूस भी होगा... दिल भी न लगा पायेंगे..!!"¥❣️
सफ़र-ए-मोहब्बत से वापसी हो रही है, पुराने सारे ख्वाबों से दोस्ती हो रही है चलों मिल के यारों अपनी कस्ती सवारें, उन्हीं पुराने नग़मों से रौशनी हो रही है।।
गुरुर बहुत है मुझे अपनी अदाओं पे गर तुम्हें एतराज है तो बेशक उड़ जाओ संग फिजाओं के मगर हम ना बदलेंगे अंदाज अपनी मस्त निगाहों के सोच लो फिर एक बार या तो हो जाओ कैद या ले जाओ नग़में यहां से झूठी वफ़ाओं के।