हर सुबह इक खाली कागज़ सी है आती सामने रात तक भर जाता जो लम्हों के उलझे जाल से इक समय ऐसा भी हो सुलझा लूँ सारी उलझनें ज़िन्दगी की नोटबुक को जाँच लूँ आराम से
कलम के सिपाही पैदा होते ही नहीं बनते लोगो द्वारा बनाए जाते है अहसास छिपते नहीं बस छिपाए जाते है छोड़ जाती है ये मतलबी दुनिया ज़िन्दगी के सफ़र में अकेला लोग सपने नहीं देखते बस दिखाए जाते है