ना ख़र्चन को दाम...
ऐ रोजी,
अंदर से दादी की आवाज आई।
वो बिस्तर पे बैठकर घण्टी बजा रही थी।भागते दौड़ते रोजी आई।
जी मेमसाब..
पैर दबाव दादी ने कहा।
पास वाले कमरे में मैं और मेरा मित्र आशीष बैठा था।दादी ने पुकारा, ऐ आशीष इहा आव।
उठकर जाना पड़ा हमलोगों को।पहुंचते ही आशीष को फटकारा।
हमार बात सुनके निकल ले ल..
आशीष चुप चाप अपनी सफाई देने लगा।मैं अखबार पढ़ने लगा। नोटबंदी की खबर थी पहले पन्ने पर।1000 और 500 के नोट बन्द।
इधर दादी अपना ज्ञान देती ही जा रही थी।आशीष की हालत खराब।मैंने बात बदलने के लिए कहा..
ऐ दादी कुछ रुपिया दबले हई त निकाल दे।
1000 और 500 वाला।
दादी ने गुस्से से अचानक पहले मुझे देखा फिर पीछे सन्दूक देखा।फिर बोली..
ना विद्या ना बाहुबल ना ख़र्चन को दाम।हमरे पास कुछो नही बचवा।
विषय मे व्यतिक्रम से दादी ने आशीष का पीछा छोड़ दिया।हम फिर से बगल वाले कमरे में आ गए।
तभी दादी की आवाज आई।
रोजी ई सब का कह रहे थे। मेमसाब मोदी जी 1000 और 500 का नोट बन्द कर दिए हैं।अब उसे बैंक में जमा करना होगा।नही रुपिया बेकार हो जाएगा।
ऐ आशीष बेटा आओ,
हम फिर उनके कमरे में पहुंचे।वो बोली ऐ बेटा हमारे पास 50000 है।संदूक से निकालकर बैंक में डाल दो बचवा।।उनकी इस बात से हम सब हंस पड़े।वो झेंप गयी आशीष ने कहा,ना ख़र्चन को दाम..सब हंस दिए।
सिद्धार्थ मिश्र
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