एक समय की बात है, छोड़ो क्या बताऊं
ये अधूरे जज़्बात है, छोड़ो क्या बताऊं
बता दूं, किसी से कहोगे तो नहीं
यार मगर तुम, चुप भी रहोगे तो नहीं
ज़ाती बात भी, सरेआम करते आया हूँ
यूँ ही तो मैं खुद को, नीलाम करते आया हूँ
तुम्हारी बात भी, यूँही कही होगी
और तुम भी तो, वहीं रहीं होगी
कुछ ऐसा ही तो है, किरदार अपना
वादा भी कैसे करूँ, दोबारा नहीं होगी
ज़ाती बात भी, सरेआम करते आया हूँ
यूँ ही तो मैं खुद को, नीलाम करते आया हूँ
डरता हूँ, कुछ ज्यादा न बोल जाऊं
दबे राज़, बेकार ही न खोल जाऊं
है मुश्किल बड़ा, हक़ीक़त से ओझल रहना
ऐसे कैसे मैं, खुद को उलझाऊँ
ज़ाती बात भी, सरेआम करते आया हूँ
यूँ ही तो मैं खुद को, नीलाम करते आया हूँ
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