QUOTES ON #निर्भया

#निर्भया quotes

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19 FEB 2020 AT 18:40




"किसी कहर से कम नहीं थी, उसकी आवाज़ उस रात,
राख के तरह फूँक डाले, उन ज़ालिमों ने उसकी ईज्जत "




 

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1 OCT 2020 AT 11:18

सरकारें बदलीं हालात नहीं।

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20 MAR 2020 AT 7:02

हर इक दिन गुजरा कई सदियों जितना।
तौहीन न्याय की और मुज़रिम ये अदालत।

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16 DEC 2017 AT 18:10

उस 'गुड़िया' की चीख अब शायद खामोश हो गयी।
शैतानो के आगे लाचार, बेबस और बेहोश हो गयी।
बेधड़क सौदा हुई भावनाओ की मेरे देश केे बाजारों में,
बस बजट बनाकर 'सियासत' एहसानफरामोश हो गयी।

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15 DEC 2018 AT 17:14

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7 MAY 2017 AT 13:41

रौंद गया वो रूह तेरी
हैवानियत तुझको खा गई,
देख कर हालत तेरी
मानवता भी थर्रा गई।

मोमबत्ती तो सभी ने जलाई
मोर्चे निकाले कई,
पर लपटें वो सुलगती रही
जिनमें तू जल गई।

दरिंदगी भी शर्मसार हुई
वर्षों के इंतजार में,
वक्त भी तिलमिला उठा
तेरी चीखों की पुकार से।

घाव पर मरहम तो
कचहरी ने लगा दिया,
बहते अश्कों के स्रोत को
एक ठहराव भी दिला दिया।

इंसाफ के नाम पर
फांसी तो ज़ालिमों को सुना दी गई,
पर असल शान्ति तो उसको तब मिले
जब कभी निर्भया ना बने कोई।

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17 DEC 2020 AT 7:41

निर्ममता के आगे
निर्भया थी वो
काल मिला दानव को
मृत्युंजया थी वो
निर्दयता मिली उसे
मानवता हृदय थी वो
विनय थी, प्रणय थी, समय थी वो
अविनय अतिव्यय के आगे भी
निश्चित निर्णय थी वो
अतिशय प्रलय से घात हुआ
अभिउदय लक्ष्य थी वो
अन्मय को भी संजय कर दे
ऐसी अक्षय थी वो
नारी को कर दे सहोदय जो
ऐसी अभिजय थी वो

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13 APR 2018 AT 22:24

चीख चीख कर रो रही हैं, देश की गलियाँ मेरी,
जब से कुचली जा रही हैं, देश की कलियाँ मेरी..

फूल जलते हैं यहाँ, और हवाएँ कैद हैं,
रास्ता भूली हैं खुद ही, देश की गलियाँ मेरी..

घूमते हैं फिर दुःशासन, चीर हरने को यहाँ,
कौरवों का खेल हैं अब, देश की गलियाँ मेरी..

जो निगेबाँ देश के, वो जान कर खामोश हैं,
राज़ कितने हैं छुपाये, देश की गलियाँ मेरी..

शर्म भी देखो यहाँ पर, खुद ही शर्मसार है,
रूह-ए-तार तार हैं अब, देश की गलियाँ मेरी..

तू सुने या ना सुने, रुदन यहाँ पर हो रहा,
हैं सिसकती रात भर अब,देश की गलियाँ मेरी..

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9 JAN 2019 AT 18:04

उधड़े हुए जिस्म पर जो तुम निशान देखते हो,
हैवानियत और दरिंदगी की पहचान देखते हो,

बिखरी है जो सिर्फ एक जिस्म थी उनके लिए,
दांतों और नाखूनों से लिखा तुम नाम देखते हो,

तंग कपड़े थे उसके या तन्हा घर से निकली थी
उठी उंगलियाँ, तार होता उसका मान देखते हो,

एक निर्भया मरती नहीं और दूसरी जी उठती है
रोज नई अर्थी का तुम साजो सामान देखते हो,

शोर उठेगा, रैलियां निकलेंगी कुछ दिन के लिए
लो अब बुझी राख पर उठता मकान देखते हो !

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29 NOV 2017 AT 19:26

लाख पहुंचाओ ए कानून तुम हैवानों को जहन्नुम फांसी के तख्त पे,
चोली से चरणों पर नजरे आनेतक कमी "निर्भया" की न रहेगी!

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