QUOTES ON #निर्जन

#निर्जन quotes

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18 APR 2020 AT 17:12

तुम्हरी बातैं मधुर-मधुर थी,,
रम जाती मेरे मन में,,,,।
याद तुम्हारी सच-मुच न्यारी
मन निर्जन कर दे क्षण में,,,,।
भूतकाल क्या जिया था हमने
नयन समाए नयनन में,,,,।
भविष्य कठिन तुम्हरे बिन साथी
क्षत-विक्षत जीवन क्षण में,,,,।

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5 MAR 2022 AT 12:04

बलिवेदी....

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13 MAR 2022 AT 13:47

जबसे छूट गया पथ तेरा
है मन में कोई आस नहीं....

सूनी हुईं हृदय की  गलियाँ ,
मुरझायीं देखो सब कलियाँ ,
नीर नयन से ऐसे बरसें , आया सावन मधुमास नहीं ।
               है मन में कोई आस नहीं....

आहत मन भटके है वन  में ,
बचा न कुछ नश्वर जीवन में ,
पावस हो चाहे फागुन हो , कोई मौसम अब रास नहीं ।
               है मन में कोई आस नहीं....

छाया है  देखो  अँधियारा ,
दूर बहुत मुझसे उजियारा ,
मेरे मुख मंण्डल को देखो , है हास नहीं परिहास नहीं ।
               है मन में कोई आस नहीं....

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31 OCT 2019 AT 11:12

निर्जन सूने स्थानों पर उस सुंदर जीवन के प्रमाण मिले हैं,
शहरों के जंगलीपन से जो प्रदूषित नहीं होता कभी।

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12 JUN 2020 AT 7:38

यदि किसी अरण्य में
भयावह निर्जन वन में
काई लगी हुई बाबरी के कोर पर
पुरानी ईंटों से बनी मुंडेर के मोड़ पर
चुना सुड़की रेत सीमेंट के खंड-खंड कर
उग आए एक पीपल पुरुष भूखंड पर
तो समझ लेना भयंकर युद्ध हुआ होगा
प्रकृति एवं मानव निर्मित संसाधन के मध्य
अंततः विजय श्री प्रकृति की ही हुई होगी

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16 MAR 2020 AT 18:52

कुछ अपने दिल की भी कह लेते
कुछ बुझी अग्नि को भी सह देते
होती शांत ये व्याकुलता मन की
गर बात ज़ुबाँ की तुंम कह देते
कुछ अपने दिल..
मोती माणिक तिनका सम ,चाह नहीं
कोई रस्ता रोके, कँकरीली दुर्गम राह नहीं
खुशियाँ तेरे चेहरे की गर बन जाती गहना
तुंम कहते तो निर्जन वन ,पत्थर पे सो लेते
कुछ अपने दिल..

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12 OCT 2021 AT 7:03

अश्क़ों से अपने आरिज़ धोकर ये मालूम हुआ
पाना कैसा होता है खोकर ये मालूम हुआ

पुष्प-से खिलते यौवन में संग तुम्हारे निर्जन में
हँसने की थी क़ीमत क्या रोकर ये मालूम हुआ

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6 NOV 2020 AT 8:12

शून्य से हुआ सबका सृजन।
शून्य में समाकर सब कुछ होगा निर्जन।
ख़ुद की ख़ोज के लिए मिला जीवन।
सुख-शांति को पाना ही है जीवन का मर्म।


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24 JUL 2023 AT 10:51

क्यों ना चला जाए उस निर्जन वन प्रदेश में,
जहां सिवाय सर्राहट और मेरे कुछ ना हो,
खोल दिया जाएं वहां इस निर्जन मन को भी,
जो इन पत्तियों की भांति टूट चुका है,
टूट गया है उस डाली से, जहां नव पल्लव की भांति कभी उभरा था,
आज उसी से टूट कर बिखर गया है,
ये सूनापन आज उसे सुकून पहुंचा रहा है,
जहां कोई आवाज नही, सिवाय उसके मौन के,
हर तरफ बिखरी ये पत्तियां,
उसे अपना बिखरा हुआ एक एक दुख नजर आता हैं,
जो पत्तियों की भांति सूख कर, सिर्फ उसकी कर्कश आवाज से कानों को दुख दे रहा है,
और ये चलती रेतीली हवाएं,
जैसे उसके मूल को उड़ाएं ले जा रही थी,
और वो पीछे सिर्फ एक चलती सांस वाला इंसान खड़ा था ।

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19 FEB 2019 AT 19:27

दूर क्षितिज पर इक दरवाजा, अंदर रात अकेली;
निर्जन वन दुल्हा बन बैठा, दुल्हन नयी नवेली।
(अनुशीर्षक में पढ़ें)

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