रात को आए चुपके से दबे पाँव मेरे सपने नींद में बसायी अपनी नयी दुनिया सपनों की चरित्र थे कुछ अपनों के कुछ थे अनजान सब कुछ था बहुत निराला पर विचित्र फिर भी सुबह तक ना टुटा सपनों का चित्र
हम इतने अनौखे हैं, कि हमारे जैसा ईश्वर ने न पहले कभी किसी को बनाया और न ही कभी फिर बनाएगा। कुदरत में पुनरावृत्ति नहीं होती सब अनौखा है, सब निराला है और यही निरालापन हमारा सौंदर्य है, जो अभी है इस पल है