बुरा लगा तो माफ करो तुम,
लेकिन अब इंसाफ करो तुम.!
खुद की एक झलक तो तरसा,
ये आईना साफ करो तुम.!
चूम लो आगे बढ़कर मुझको,
तरसा कर मत ख़ाक करो तुम!
फेरो मुझ पर हाथ करम का,
अब तो मुझको पाक करो तुम.!
जुम्बिश मुझमें भी आ जाये,
बाहों में आबाद करो तुम..!
छू लूँ नाज़ुक होंठ तुम्हारे,
अब तो ऐसी रात करो तुम.!
स्वतंत्र मिटा दो शिक़वे सारे,
कोई ऐसी बात करो तुम..!
सिद्धार्थ मिश्र
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