जिस क्षण.. तुम्हारे पुरूषत्व का लोप होगा, मेरे स्त्रीत्व का मोहभंग होगा, हर्षित युग का.. आकाश शंखनाद करेगा, जल सोमरस बनेगा, मृदंग से कम्पित धरा, मलिनता त्याज्य देगी, भारहीन प्रेमपाश में बंध, स्त्री से पुरूष, पुरूष से स्त्री का, चिर मिलन होगा।।
तेरी धड़कनों का अनहद नाद जब गूंजता है ख़ामोशी में, मेरी धड़कनें झूम उठती है, नृत्य करता है मन उसकी ताल पर! लगता नहीं मुझे उस सा मीठा, दुनिया का कोई भी संगीत! नहीं है सुन्दर कुछ इस दुनिया में, सिवा तेरी प्रीत के ओ मनमीत!