हकीकत छुपाती है मुझसे नसीहत देकर,
उसकी झूठ को सच मान लेता हूं उसकी मासूमियत देखकर।
मैं गिरा हूं कितना मालूम हुआ मुझे,
उसकी नजरों मैं हूं गिरा देखकर।
मैं तबाह हो ही गया था लगभग ,
फिर संभला वो कौन है मेरी ये सोचकर।
लोग जानते हैं उसके और मेरे बारे में मगर,
हैरत में पड़ गए लोग ये सब मेरे साथ होता देखकर।
मैं भी बेबस आखिरकार दुआ दे दी,
जा खुश रह तू मुझसे जुदा होकर।।
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