अपेक्षित धन-धान्य,मान-मर्यादा, आचार-विचार,सुपथ-सुसंगत, श्रेष्ठ जीवन के आधार। परित्याग इनका सदैव अत्यंत व्यर्थ, प्रत्येक-प्राणी-प्रस्तर-नग-नदी आदि-अनादि, से ग्राह्य है बिन प्रचार।
तेरे माथे पे जो ये पसीने की बूंदें हैं न, ये बूंदें नहीं ! तेरे मेहनत से तराशी गईं, हीरे की नगें हैं ! जो चमचमाती हैं, तेरे माथे पे, शहंशाह के ताज की तरह ।।