सवेरे ने, कोहरे का ढेर लिया है
यूँ मानो, समाँ पूरा, घेर लिया है
इतरा रहा है, जाने किस बात पर
जाने क्यों, रवि से मुँह, फेर लिया है
फिर कोई, हिमाकत करें
आओ, धूप का स्वागत करें
वो चाय की चुस्की अधूरी है
और एक बात है, जो ज़रूरी है
खैर छोड़ो, तुम कहाँ समझोगे
तुम्हारी, अपनी मजबूरी है
फिर कोई, हिमाकत करें
आओ, धूप का स्वागत करें
छुपी बैठी है, बादल के पीछे
जैसे, नज़र कोई, काजल के पीछे
एक मचलता सा दिल है वो
धड़क रहा है, किसी आँचल के पीछे
फिर कोई, हिमाकत करें
आओ, धूप का स्वागत करें
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