पहाड़ों की कंदराओं में बैठकर तप कर लेना सहज है, किन्तु परिवार में रहकर धीरज बनाए रखना
सबके वश की बात नहीं है।-
💕धीरज की सभी गाँठे
मैं तेरे प्रेम की नमी से
अब खोलना चाहती हूँ
खलती हैं खुद़ को ही
अब खामोशियाँ मेरी,कि
होना है धुआँ-धुआँ मुझको
मैं अब बोलना चाहती हूँ,,
प्रेमसुखन ही नहीं
तेरी हर पीड़ा की
दरकन को मुझमें अब
जज़्ब करना चाहती हूँ
स्पर्श कर पाऊँ या नहीं
पर बनके कवच तेरा
अब रहना चाहती हूँ
पानी सी हो जाऊँ मैं
और खो लूँ वजू़द मेरा
कि तुझमें मिलकर अब
मैं "तुम" होना चाहती हूँ
हाँ मैं तुझमें घुलकर
तेरे पोर -पोर में अब
बहना चाहती हूँ ,,💕💕
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व्याकुल मन
कब तक
धीरज बाँधे
कान्हा...
पग थिरक रहे मेरे
तेरे धाम में
आने को !!!-
सब्र करो......
ये वक़्त भी गुज़र जायेगा,
जब ख़ुशी नही ठहरी,
तो गम कैसे रुक जायेगा,
जब वो दिन नही रहे,
तो ये दिन भी गुजर जायेंगे,
बस थोड़ा सा सब्र करो,
वक़्त दोनों का बदल जायेगा।।-
खुद से भागते रहने का ,ढूढता है बहाने
तू क्यों बावरा हुआ जा रहा है
किन सपनों में खो रहा है
यूं अकेले बैठकर आसमां को ताकना
गुनगुनाना और खुद से बातें करना
क्यों तुमको भा रहा है
तू चंचल हुआ क्यों भटक रहा है
मन तू आजकल इतना क्यों मचल रहा है
तनिक धीरज धर सम्भल जा क्यों बावरा हो रहा है
क्यों रोज-रोज बुन रहा नए नए तराने
डर रहा है सुन न ले कोई दिल की धड़कनें
मन तू क्यों न माने...-
हे राम!
मैं तुम्हारे सामने अड़ा नही।
क्योंकि मैं तुझसे बड़ा नही।
मेरी नाव डूबने वाली है
क्या तू मेरे साथ खड़ा नही।
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तक़दीर के सहारे बैठ हुए लोग,
अक्सर बेहतर क़िस्मत(सफलता) कि कल्पना करते हैं।
जबकि बुलंद होंसले वाले.....
अपनी कल्पना मुताबिक ही क़िस्मत(सफलता)तय करते हैं।
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