महज धागा नहीं दिलों के बीच का तार है ये रक्षाबंधन। भाई बहन के बीच का अनमोल प्यार है ये रक्षाबंधन। खुश रहो तुम हमेशा कोई आंच ना आये तुम पे कभी भाई का बहन से इस वादे का इकरार है ये रक्षाबंधन।।
बनकर एक ओस की बूंद एक अश्क़ यूँ ही आँखो से छलका देता हैं हम जोड़ते रहते हैं उन अश्क़ो को उन धागुओ से और एक बिखरा मोती हैं जो पल में टूटकर बिखर जाता हैं ये नयनो से जाने क्यूँ इतना नजरे चुराया करता हैं !!!
कभी अधूरा सा कुछ कहूं, तो तुम पूरा समझ जाना हम तो उलझे हैं तुझमें, तू कहीं हममें ना उलझ जाना रहने दे मुझे तुझमे उलझा हुआ ही, सुलझते हैं गर धागे तो अलग हो जाते हैं.
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