QUOTES ON #दोपहर

#दोपहर quotes

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20 APR 2022 AT 22:37

जिन्दगी का हर पल छुपी हादसो का कहर है
न जाने कब कहाँ से आ जाए वो जहर है
कभी छाव तो कभी तपती दोपहर है ।

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2 DEC 2020 AT 20:23

आँखो में ना भर यार आँसू रोज़ सहर होने तक
मुझे ग़म का बना ले बाग़बान दोपहर होने तक

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8 JUN 2021 AT 12:46

-जेठ की दोपहरी-

जेठ की दोपहरी तपती है सुलगती है
मगर वह नहीं बैठ सकती
किसी अमराई की छांह में
एक प्यास उसके भीतर तड़पती है
मगर वह नहीं भीग सकती
आषाढ़ की तरह किसी बादल की बांह में
सूरज उसे जितना जलाता है जलती है
मगर वह नहीं बुझ सकती
रात की पनाह में
ज़िंदगी भी जेठ की दोपहरी जैसी लगती है
मगर लंबी है वह नहीं गुजर सकती
एक माह में
ज़िंदगी में कई तपिश जलाती हैं कई लू आती हैं
मगर ज़िंदगी चलती रहती है
बेहतर कल की चाह में

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22 MAY 2019 AT 9:16

जागते ही दोपहर हो जाती है।
ये धूप न जाने किस चक्की का आटा खाती है।

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8 OCT 2018 AT 12:55

तुम सुबह सी ताज़ी,
मैं शाम सा खुशनुमा,

दोपहर मिलाने में माहिर मालूम होती है ।

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24 MAY 2019 AT 18:11

रुई के गुल्दसतों जैसे बादल भी
करें वार दिल पे खंजर हो जैसे
इश्क़ के दिसम्बर में शामें हिज्र की
लगें जून की दोपहरी का मंज़र हो जैसे

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18 SEP 2020 AT 14:06

बहुत दिनों बाद यारा
देख न आज मैं तेरे
शहर आया
हूँ ।।

सुबह टाइम नहीं मिला
मुझको इसिलए मैं
दोपहर में आया
हूँ ।।

अरे तू मिल तो पागल
एक सरप्राइज है तेरे
खातिर...

तुझे पसंद है न यारा जो
बेहद वो तौफा मैं
लेकर आया
हूँ ।।

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3 DEC 2020 AT 12:45

दिसंबर की सुनहरी दोपहर मे
'मेड़' ना जाने कितनी ही
कविताएँ सुस्ती से 'पसरी'
प्रतीत होती है.....
शब्द ऊँघते से दिखते है
जैसे 'चारपाई' पर कोई बालक
एक आँख खोले निढ़ाल पड़ा हो....
रात की ठिठुरन से कुम्हलाए
हुए कितने ही गीत इस
चमकीली धूप मे आँखे खोलने लगते है.....
नन्ही चिड़ियें जो रात की सर्द
निष्ठुर हवाओं से डर कर दुबक गई थी
इस गुनगुनाती सी दोपहर मे आपने
सुमधुर गीतों से फिर अटारी
को गुलज़ार करने लगी है....
वो सुन्दर कपोत युगल जो विकल था
अपने तिनको के आशियाने मे,
वो अब अठखेलियां कर रहा है.....
'पतंगे' जो ठिठुर के छुप गईं थी
अलमारी के किसी कोने मे
इस मनमोहक दोपहर मे आकाश मे
नवयौवना सी नृत्य प्रदर्शन कर रहीं है|

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13 MAY 2020 AT 0:28

दिन से दोपहर...! दोपहर से शाम...!
शाम से रात...! होने का इंतजार करना...!!
दिन दिन भर काम करके शाम होते ही काम से लौटना...!
घर जाने के बारे में मन ही मन सोच ना...!
घर जाके आराम करूंगा सोचते सोचते
घर का रास्ता तय करना...
घर पहुंचते ही हाथ मुंह धो के आराम करना...!
सोचते सोचते रात हो जाना...!
अंधेरी रात में कुछ बातें से खुद करना...
खुद से मिलना सोचते सोचते
आंख लग जाना...! गहरी नींद में सो जाना...!
एक रात गुजर जाना एक सहर फिर हो जाना...।

नई सुबह की शुरुआत हो जाना एक कल की शुरुआत हो जाना !!

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18 OCT 2018 AT 19:05

भरी दोपहरी रौंदी थी जो पांव तले परछाईया ,
शाम हुआ तो कद से ऊँचे हो गये साये मेरे ही ..

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