QUOTES ON #दोगलापन

#दोगलापन quotes

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19 MAR 2019 AT 22:30

बच्चों का क्या ही सोचना,जैसे तैसे बड़े हो ही जायेंगे
फ़िक्र तो ये कि भगवान कहाँ रहेंगे खुदा क्या खायेंगे।

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कुछ लोग तो इतने मीठे तरीके से बात करते है -
की डायबिटीस होने का डर रहता है !
पर शुक्र है की -
डॉक्टर ने मुझे मीठे से दूर रहने को बोला है !!!

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10 OCT 2018 AT 9:56

दुर्गा के पाँव छूने बढे थे, ये हाथ तो
ना जाने कब उसके जाँघ तक पहुंच गये..!

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21 MAY 2021 AT 20:50

इस युग में 'वास्तविक' बने रहना भी एक 'कला' है।

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7 MAR 2022 AT 19:52

कभी कभी हम कुछ लोगों और कुछ चीज़ों से, उनके होने के एहसास से अपने आप को इस तरह घेर लेते हैं, कि कुछ समय बाद हमें लगने लगता है हम तक आने वाली हर ख़ुशी, हर दुख उनसे होकर आता है या आयेगा। वो ख़ुशियों के 'एक ज़रिया' से ख़ुशियों के 'सिर्फ वही एक ज़रिया' तक का सफ़र कब तय कर लेते हैं हमें समझ नहीं आता। और वही दुखों के कारण भी बनते हैं, कभी हम इल्ज़ाम दे पाते हैं तो कभी पीड़ित दिखने की मानसिकता लिये सब ख़ुद पर लेने की महानता दिखाते हैं। न जाने हम कितने धोखेबाज हैं ख़ुद के लिए जो अपने दोगलेपन को जीते हुए दूसरों के बदलने का शोक मनाते हैं।

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14 AUG 2017 AT 16:57

कहने को तो लेखक है जनाब
बातें भी क्या खूब किया करते हैं
अपने शब्दों के जादू से सबको मोह लिया करते हैं
चाहे बेरोज़गारी पर लिखना हो या किसी के अत्याचारों पर
क्या खूब तंज कसा करते हैं
अपने एक मात्र लेख से ही दोषियों को पानी पानी कर दिया करते हैं
राजनीति हो या हो शोषण किसी का,
या हो वो वृद्ध आश्रम की बातें
सब पर लिख अपनी सोच को महान सिद्ध किया करते हैं
ये वही लेखक है जनाब
जो घर में अपनी बीवी को पीटा करते हैं,
और बाहर घरेलू हिंसा के बड़े बड़े उपदेश दिया करते हैं
माँ को तो जैसे भूले ज़माना हो गया है
सबको इज़्ज़त का पाठ पढ़ा खुद की माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ा हैं।
लड़कियों के हक की बात करते हैं जनाब
और खुद की अजन्मी बिटिया को,
अपनी बीवी की कोख में ही रौंदा हैं।
खुद की सोच है दकियानूसी और दूसरों की सोच को दर्शाते हैं,
उनके अत्याचारो को लिख खुद महान बन जाते हैं।
खुद की नीयत खराब है और दूसरों की नीयत की बातें करते हैं
खुद बेज़्ज़त करते है औरतों को, और उनकी इज़्ज़त की बातें लिखते हैं।
जात-पात, धर्म, मज़हब की सीख हैं देते
सबको इससे ऊपर उठने को कहते हैं
और जनाब अपने ही घर में छोटू को भला बुरा कहते हैं।
कहाँ तो बड़े बड़े उपन्यास लिखे हुए है जनाब ने
बाल मज़दूरी का विरोध तक जताया हैं,
पर अपने घर में ही छोटू से काम करा उसपर खूब अत्याचार ढाया हैं।
(Full in caption)
-Naina Arora

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25 JUN 2020 AT 20:57

ज़रूरी तो नहीं की लिबास की बंदिश में कोई खोट ना हो,
पर गर अर्धनग्नता से सोच ऊंची होती तो ऐसी भी कोई बात ना हो,

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31 MAY 2017 AT 19:15

मर्द करें तो उसमें दम
औरत करें तो संस्कार कम ।।

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8 NOV 2017 AT 7:40

मातृत्व हत्या कर महान कार्य करता हूँ
मन नहीं भरता उपवास भी तो धरता हूँ

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1 JAN 2022 AT 6:47

सबसे बड़ी विडंबना ये है कि यही भारतीय आज के 25 दिन बाद अर्थात 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस का उत्सव मानने का ढोंग करते हुए दिखाई देंगे। मुझे नही लगता ऐसे दोगले समाज की जरूरत है भारत को।

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