गाँव से कोसो दूर हैं हम खुद के घर से बेघर हैं हम प्यार मोहबत के लिए वक़्त कहाँ दो वक्त की खाने के लिए यहां वहां भटकते हैं हम अपनों से दूर होना नही चाहते पर इन हालातों से बड़े ही मज़बूर हैं हम हाँ...एक मजदूर हैं हम....!
दो लफ्ज़ ही तो थे जो कहने थे मुझको किसी को अब उम्र बीत गई यूँही पर मिल ना सका फिर भी अफसोस नही अब ये आलम है डरता हूँ मै कहने में वो दो लफ्ज़ आइने में देख कर खुद को ना जाने क्यूँ