देर न करना इस बार हे बरखा तुम आने में
दाना दाना सूख गया है, बचा नहीं कुछ खाने में
प्यास बुझा दो इन खेतों की, इन पर तुम बरस जाओ
कब तक तुम कठोर बनोगी, अब तो तुम तरस खाओ
जाने क्यों क्रोधित है सूरज, सारी धरती जल रही
घड़ी तुम्हारे आने की बार बार क्यों टल रही
देर न करना इस बार हे बरखा तुम आने में
अमृतमय कर दो ये धरती, रस भर दो हर दाने में
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